मिस्वाक और उसकी अहमियत
मिस्वाक और उसकी अहमियत
بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
मिस्वाक या दातुन दाँतों और मुँह की सफ़ाई के लिए बहुत ज़रूरी है इससे सफ़ाई के अलावा बहुत सी बीमारियाँ भी दूर होती हैं। दीन-ए-इस्लाम में इसकी इतनी अहमियत बताई गई है कि बयान से बाहर है। यह हर नबी की सुन्नत है और हमारे हुज़ूर گ की मुस्तक़िल सुन्नत रही है। मिस्वाक करना सुन्नत-ए-मुअक्कदा है यानि ऐसी सुन्नत जिसका छोड़ने वाला हुज़ूर की शफ़ाअत से महरूम रहेगा।
हुज़ूर ﷺ के फ़रमाने आलीशान हैं कि-
- तुम्हारे मुँह क़ुरआन के रास्ते हैं पस इनको मिस्वाक से साफ़ करो।
(अबू नईम,बज़्ज़ार)
- मिस्वाक का इंतज़ाम रखो कि वह सबब है मुँह की सफ़ाई और रब की रज़ा का।
(मुसनद इमाम अहमद बिन हम्बल)
- मिस्वाक के साथ नमाज़ बिना मिस्वाक किए पढ़ी गई नमाज़ से सत्तर गुना बेहतर है।
(शेअबुल ईमान)
- अगर मैं अपनी उम्मत के लिए मुश्किल न समझता तो हर नमाज़ के वक़्त मिस्वाक का हुक्म देता।
(मुस्लिम,तिबरानी)
मशाइख़े किराम फ़रमाते हैं कि जो मोमिन मिस्वाक की आदत रखता हो तो मरते वक़्त उसे कलिमा पढ़ना नसीब होगा और जो अफ़ीम खाता हो मरते वक़्त उसे कलिमा नसीब नही होगा।
मिस्वाक के मुताल्लिक़ कुछ ख़ास बातें और मसाइल
मिस्वाक की अहमियत जान लेने के बाद इससे मुताल्लिक़ कुछ ख़ास बातें और मसाइल भी जानना ज़रूरी है।
- मिस्वाक न तो बहुत सख़्त हो न बहुत नर्म।
- मिस्वाक पीलू या नीम वग़ैरा की लकड़ी की हो, फल या ख़ुशबूदार फूल के पेड़ की न हो।
- चुंगली के बराबर मोटी और ज़्यादा से ज़्यादा एक बालिश्त लम्बी हो और इतनी छोटी भी न हो कि मिस्वाक करने में परेशानी हो।
- मिस्वाक जब करने के क़ाबिल न रहे तो उसे दफ़न कर देना चाहिये या किसी ऐसी जगह रख दे कि किसी नापाक जगह में न गिरे क्योंकि वह सुन्नत के अदा करने का ज़रिया है इसलिये उसकी ताज़ीम करनी चाहिये।
- मिस्वाक दाहिने हाथ से करना चाहिये और इस तरह हाथ में ली जाये कि चुंगली मिस्वाक के नीचे और बीच की तीन उंगलियाँ ऊपर और अँगूठा सिरे पर नीचे हो और मुट्ठी न बंधे।
- दाँतों की चौड़ाई में मिस्वाक करें लम्बाई में नहीं। चित लेट कर मिस्वाक न करें।
- पहले दाहिने तरफ़ के ऊपर के दाँत माँझें फिर बाईं तरफ़ के ऊपर के दाँत फिर दाहिनी तरफ़ के नीचे के दाँत और फिर बाईं तरफ़ के नीचे के दाँत।
- जब मिस्वाक करना हो तो उसे धो लें और मिस्वाक करने के बाद भी उसे धो लें, ज़मीन पर पड़ी न छोड़े बल्कि खड़ी रखे और उसे इस तरह खड़ी रखे कि उसके रेशे वाला हिस्सा ऊपर रहे।
- अगर मिस्वाक न हो तो उंगली या सख़्त कपड़े से दाँत माँझ ले और अगर दाँत न हों तो उंगली या सख़्त कपड़ा मसूढ़ों पर फेर ले।
- मिस्वाक नमाज़ के लिये सुन्नत नहीं बल्कि वुज़ू के लिये है तो जो आदमी एक वुज़ू से चन्द नमाज़ें पढ़े उसे हर नमाज़ के लिये उस वक़्त तक मिस्वाक करना ज़रूरी नहीं जब तक मुँह में बू न आने लगे, मुँह की बू दूर करने के लिये यह मुस्तक़िल सुन्नत है अगर वुज़ू में मिस्वाक नहीं कर सकें तो नमाज़ के वक़्त कर लेना चाहिए।
मिस्वाक कब करना चाहिये?
- वुज़ू करते वक़्त।
- क़ुरआन मजीद की तिलावत के लिए
- दाँतों पर पीलापन या मैल चढ़ जाने पर।
- सोने से पहले।
- काफ़ी देर तक कुछ न खाने की वजह से या कोई बदबूदार चीज़ खाने से मुँह का मज़ा ख़राब हो जाने पर।
मिस्वाक के दुनियावी फ़ायदे
जहाँ अहादीस में मिस्वाक की इतनी फ़ज़ीलत बयान हुई है वही इसके दुनियावी फ़ायदे भी बे-शुमार हैं जिनमें से कुछ यह हैं।
- बहुत सी बीमारियों में शिफ़ा
- जल्दी बुढ़ापा नहीं आता।
- नज़र तेज़ करता है।
- मुँह साफ़ करता है और उसकी बदबू दूर करता है।
- दाँतों का पीलापन दूर करके उन्हें सफ़ेद और चमकदार बनाता है।
- मसूढ़ों को मज़बूत करता है और दाँतों की ज़्यादातर बीमारियाँ दूर करता है।
- मेदे को ताक़त देता है और खाना हज़्म करता है।
- बलग़म को ख़त्म करता है।
- आधा सीसी यानि आधे सिर का दर्द दूर करता है।
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